Insaaf the Justice Crime Revenge Hate Story in Hindi
Disclaimer: This is a work of fiction. Names, characters, places, events, businesses, locales and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, dead or living or actual events is purely coincidental.

Insaaf the Justice Crime Revenge Hate Story in Hindi :  थ्रिलर सस्पेंस हिंदी कहानी या हकीकत का आईना?

(कहानी थोड़ी लम्बी है ..लेकिन मजा उतना है ..जितना ..एक एक्शन मूवी में ..प्यार के हिलोरो में ..और ..नफरत के समंदर में ..होता है  ..और ..डायलाग तो..ओ..ओ शोले..ए..ए  ..तो आइये शुरु करते हैं ..इस एक्शन मूवी को पढना..)

.... 1 जनवरी 2020....सुबह  7.00 बजे..

शहर से दूर हाईवे की एक खाली पड़ी मिल.... आकाश में चील-कौवे उड़ते हुए.. कुछ मिल के उपर बैठे हुए..

इंस्पेक्टर प्रीत “सर, मै लोकेशन पर पहुँच चुका हूँ।”    इंस्पेक्टर प्रीत का सीनियर “मुझे सारी डिटेल देते रहो, मै छुट्टी(लीव) कैन्सिल कर वापस आ रहा हूँ”

इंस्पेक्टर प्रीत “रवि कुछ सुराग मिला, कोई डिटेल”      “सर, विक्टिम का नाम पता नहीं चल रहा है, न ही कपड़े हैं न कोई और प्रूफ की ..उसका नाम पता चल सके।” सब इंस्पेक्टर रवि बोला।

“जिसका मर्डर हुआ है उसका नाम शेखर है। कापड़ा मंडी के प्रेसिडेंट का लड़का है।” इंस्पेक्टर प्रीत बोला  

सब इंस्पेक्टर आश्चर्य से “सर आप को नाम कैसे पता।”

इंस्पेक्टर प्रीत “6 साल पहले मै यहीं एज सब इंस्पेक्टर पोस्टेड था, तब एक केस में मिलना हुआ था, साहब को डिटेल देनी है चलिए अंदर फॉरेंसिक टीम भी आती होगी।”

तक़रीबन 1 घंटे बाद इंस्पेक्टर प्रीत अपने सीनियर को फ़ोन लगाते हैं....

इंस्पेक्टर प्रीत “सर, विक्टिम की बॉडी के उपर कोई कपड़ा नही है, उसका एक हाँथ खुला हुआ है, लेकिन उस पर रस्सी से बांधने का निशान है, दूसरा हाँथ रस्सी से बंधा हुआ है, उसमे एक-एक कर तीन गाँठे हैं, और आगे से रस्सी कुछ खुली हुई है जैसे कुछ गाँठे खोली गयी हो, विक्टिम जमींन से तक़रीबन 15-20 इंच उपर रस्सी से बंधा लटका हुआ है, उसके शरीर पर कुछ चोट के निशान हैं।

सर ऐसा ब्रुटल खतरनाक क़त्ल मैंने अपनी जिंदगी में नहीं देखा, तक़रीबन 1 सेंटीमीटर मोटी सरिया विक्टिम के एनस में घुसा कर दूसरी तरफ से निकाल दिया है, जमींन पर हर तरफ खून ही खून फैला है।”

सीनियर “तुम्हे क्या लगता है क्या हुआ होगा।”

Hindi Kahani

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इंस्पेक्टर प्रीत “सर, विक्टिम को यहाँ लाने के बाद उसके दोनों हाँथ बांध कर लटका दिया गया, दोनों हाथो में सिंगल-सिंगल 5 से 6 गाँठे बांधी गयी, उसके सारे कपड़े पहले या बाद में निकाल दिए गए, उसे जमींन  से तक़रीबन 15-20 इंच उपर लटका दिया गया, तक़रीबन 1 सेंटीमीटर मोटी सरिया विक्टिम के एनस में घुसा कर दूसरी तरफ से निकाला गया, उसका मुहं बांधा नहीं गया था ताकि वो दर्द से चिल्ला सके, सरिया ठोक कर अंदर डाला गया क्यों कि एक हथोड़ा वहाँ पड़ा मिला, सरिया डालने के बाद उसका एक हाँथ खोल दिया ताकि वो अपना दूसरा हाँथ खोल सके, लेकिन एक हाँथ पर लटके हुए दर्द में विक्टिम अपने दूसरे हाँथ की दो या तीन गाँठ ही खोल पाया, उसके हाँथ पर इंजेक्शन का निशान मिला है, शायद विक्टिम को कोई ऐसी दवा दी गयी जिससे खून बहना न रुके। ऐसा क़त्ल वो ही कर सकता है जिसमे नफरत खून में बह रही हो, या ऐसी कोई ऐसी चोट जिसने कातिल की शरीर ही नही आत्मा को भी घायल किया हो”

सीनियर “कोई प्रूफ मिला, इस से पहले कोई बवाल हो, कातिल का पता जल्द से जल्द करो” ........

इंस्पेक्टर प्रीत “सर 9 नंबर जूतों के प्रिंट मिले हैं और लम्बे बाल जो किसी लड़की के लगते हैं”

.... 1 जनवरी 2020 .... सुबह 11.00 बजे .....

इंस्पेक्टर प्रीत को दूसरे क़त्ल की इनफार्मेशन मिलती है, प्रीत लोकेशन पर पहुँच कर, सारी डिटेल अपने सीनियर को देता है।

इंस्पेक्टर प्रीत “सर, हाईवे से दूर एक मिल में दूसरी बॉडी मिली है, विक्टिम का नाम जाकिर है, जाकिर यूनिवर्सिटी प्रेसिडेंट था। उसके पिता की अपने एरिया में काफी प्रभाव है। विक्टिम की बॉडी के उपर कोई कपड़ा नही है, मुँह कपड़े से बांधा गया है, जिससे विक्टिन चिल्ला न सके, विक्टिम का दोनों हाँथ रस्सी से बंधा हुआ है, उसमे एक-एक कर चार गाँठे हैं, विक्टिम जमींन से तक़रीबन 50-60 इंच उपर रस्सी से बंधा लटकाया हुआ है, उसके नीचे लकड़ी जलाई गयी थी, कुछ लकड़ी और राख मिले हैं। उसके पैर नीचे से झुलसे हुए हैं, उसके पूरे शरीर पर किसी बहुत ही पतले धारदार हथियार से 20 से ज्यादा बार मारा गया है। इसे बहुत तड़पा कर मारा गया है। यहाँ पर भी लम्बे बाल और 9 साइज़ जूतों के प्रिंट हैं। 

कातिल ने दोनों विक्टिम पर अपनी नफरत निकाली है, क़त्ल तो वो एक झटके में कर सकता था, लेकिन उसने इन्हें घंटो तड़पाया और तड़प तड़प कर मरने के लिए छोड़ गया।”

 सीनियर “तुम्हारे एरिया में हो क्या रहा है.... मुझे जल्द से जल्द रिजल्ट चाहिये”

.... 2 जनवरी 2020 .... साम 4.00 बजे .....

विजय अपने घर में अकेला बैठा अतीत में खोया हुआ था, उसने अपनी पत्नी की इच्छा पूरी की, उसके दोनों बच्चे अच्छे से पढ़ लिख कर विदेश में सैटल हो गये थे। उसके जीवन में कुछ बचा था, तो वो था अपनी बड़ी बेटी उमा का पता लगाना।

डोर बेल बजती है, विजय दरवाजा खोलता है, सामने इंस्पेक्टर प्रीत को खड़ा पाता है। विजय उन्हें अंदर बुलाता है, दोनों चाय पीते हैं।

इंस्पेक्टर प्रीत “आप के पुराने घर गया था पता चला,घर बदल कर शहर से दूर दूसरे घर में शिफ्ट कर लिया है,.....8 महीने से अजित गायब है, आज शेखर और जाकिर की लाश बहुत बुरी हालात में हाईवे के अलग-अलग मिल से मिली है।”

विजय “दूसरो की जिंदगी छीनने वालो की जिंदगी, अगर मौत छीन ले, तो दुखी नहीं होते।”

इंस्पेक्टर प्रीत “इन तीनो का नाम आप की बेटी के गुम होने के केस में आया था, वैसे आप के पैर का साइज़ क्या है।”

विजय “तीन नहीं चार थे, लेकिन मुझे तो सिर्फ अजित का नाम पता है, बाकि तीनो का नाम तो आप लोगो ने मुझे कभी बताया ही नहीं, वैसे मेरे जूतों का साइज़ 8 है, और कीड़ो मकोड़ो को मसलने के लिए ये साइज़ काफी है।”

इंस्पेक्टर प्रीत “देखिये अगर इन केस में आप का कोई हाँथ है तो आप थाने आ कर अपना जुर्म कबूल कर लीजिये, नहीं तो बाद में ज्यादा परेशानी होगी।”

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“किसी को इतने भी जख्म न दो... की....उसे दर्द से फर्क ही न पड़े” विजय मुस्कराता है।

“प्रीत जी एक वक़्त आप ने मेरी मदद करने कि बहुत कोशिश की, इसलिए मै आप को एक पिता का दर्द बता रहा हूँ, मेरी बेटी उमा नहीं मिली, उसके गम में मेरी वाइफ का देहांत हो गया, लेकिन अजित और उन तीनो की, वो जो भी थे, उनकी जिंदगी आराम से चलती रही, मै हर पल जलता रहा तड़पता रहा, वो सब खुशियाँ मनाते रहे।

वक़्त किसी का सगा नहीं होता, कल आप का.. आज मेरा तो... कल किसी और का होता है।

वक़्त जब लेने पर आता है.. तो आप कहीं भी छुप जाओ वो ले ही लेता है....

और जब वो किसी की लेता है तो देने वाली की सिर्फ चीखें सुनाई पड़ती हैं ....6 साल बाद ही सही, वक़्त ने उनकी ले ली” विजय शांत स्वर में बोला।

इंस्पेक्टर प्रीत “हम सब प्रशासन का हिस्सा हैं हमे उस हिसाब से चलना चाहिये”

“प्रशासन पर मुझे पूरा भरोसा था, लेकिन जब भरोसा छूटता है.. तो इन्सान टूटता है.. और टूटा हुआ इन्सान या तो मरता है या मारता है” विजय की आँखों में सवाल था।

इंस्पेक्टर प्रीत वहाँ से चला जाता है।

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वक़्त में पीछे........बदला या इंसाफ की लड़ाई ?  ....

..... फरवरी 2014....

(एक साधारण परिवार.. जो अपनी साधारण सी जिंदगी में खुश था)

रात 9 बजे विजय अपने घर में खाना खाते हुए टीवी पर समाचार सुन रहा था। टीवी में बलात्का* की न्यूज़ चल रही थी और ये पूरी घटना उसके अपने शहर में हुई थी।

सीमा (विजय कि पत्नी) “ना जाने क्या हो गया है इस शहर को, लड़कियां कैसे घर के बाहर निकले।”

विजय (खाना खाते हुए) “ये सिर्फ इस शहर कि बात नहीं है, सभी शहरों का यही हाल है।”

सीमा “हम लोग कुछ करते क्यों नहीं जिससे इन दरिंदो को सबक मिले।”

विजय “तो क्या करें, काम धंधा छोड़ कर हाथों में झंडा और कैंडल ले कर निकल जाएँ, या धरना प्रदर्शन करतें रहें, कानून है प्रशासन है, वो देखेगा, लोगो को और बच्चो को ऐसे गलत लोगो से सजग रहना चाहिये, तुम अपना ज्यादा दिमाग मत खपाओ, रोटी ले कर आओ।”

सीमा “सब अपना-अपना काम करो बस, जुर्म के खिलाफ तब कौन खड़ा होगा।”

विजय एक सीधा-साधा इन्सान था, जिसने डिप्लोमा किया था, और बहुत सालो तक अपने शहर के कई कंपनी, मिल में काम किया था। लेकिन घर के बुरे हालात और माँ पिता की ख़राब तबियत की वजह से वह अपने पिता की मेडिकल स्टोर उनके साथ सँभालने लगा था। तीन साल बाद उसके माँ पिता का देहांत हो गया, उसके परिवार में उसकी पत्नी सीमा, उसकी बड़ी बेटी उमा, छोटी बेटी रमा और सबसे छोटा बेटा सोम था।

.... 31 दिसम्बर 2014.... साम 4:00 बजे....

विजय “सीमा जी, उमा बेटी कहाँ है रविवार का दिन है सुबह से दिख नही रही है”

सीमा “आप भी भुलक्कड़ हो गए हो, दो दिन पहले हे तो उमा ने आप को बताया था, आज उसकी MSC के लास्ट इयर के साथियों का गेट-टूगेदर है, रात 7 बजे तक आ जाएगी”

.... 31 दिसम्बर 2014.... रात 8:00 बजे....

विजय “फ़ोन करो, कब तक आएगी उमा”     “अभी फ़ोन किया था वो निकल गयी है” सीमा

विजय के मोबाइल की रिंग बजती है....  विजय “हैलो....” “हैलो... हैलो...पापा मुझे बचाइए...वो..वो अजित मुझे...यहाँ पर..और तीन लोग भी हैं....” डरी हुई कपकपाती आवाज में उमा मोबाइल पर बोली।

“तुम डरो नहीं..मै हूँ ना, तुम कहाँ पर हो” विजय सहमा हुआ पूछता है।

उमा डरी हुई “पापा ..वो ..हाईवे के लेफ्ट से जो रोड..है उसके आगे खाली....ऩा.नहीं ... छोड़ छोड़ मुझे, प्लीज मुझे जाने दो.....” उमा की चीख़ती हुए आवाज मोबाइल कॉल कटते ही शांत हो जाती है।

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विजय “हैलो ..हैलो ..बेटा कुछ बोलो।”

विजय बार बार उमा को मोबाइल पर कॉल लगाने की कोशिश करता है। लेकिन उमा का मोबाइल स्विच ऑफ बताता है। विजय डर से पसीने से लथपथ, सहमा हुआ अपनी स्कूटर पर पुलिस थाने की और दौड़ता है। थाने पहुँच कर विजय घबराया हुआ सारी घटना बताता है।

विजय “सर, कुछ भी करके मेरी बेटी को बचा लीजिये”

सब इंस्पेक्टर प्रीत “आप परेशान न हो हम अपनी पूरी कोशिश करेंगे”

पुलिस ने अपनी कार्यवाही शुरू की, लेकिन उनके पास हाईवे के किस साइड रोड पर जाना है उस लोकेशन की सही जानकारी नहीं थी। सुबह हो गयी, विजय थाने में ही रुका रहा, उसे कोई भी कुछ नही बता रहा था। एक सिपाही विजय के पास आ कर बोला कि वो घर चला जाये जैसे ही कुछ पता चलेगा उसे खबर दे दी जाएगी।

विजय रोज थाने जाता।

एक सप्ताह बीत गया कोई खबर नहीं आई, विजय थाने जा कर पता करने की कोशिश की, कोई कुछ भी नही बता रहा था। विजय ने बहुत विनती की।

सब इंस्पेक्टर प्रीत विजय को बाहर मिलने के लिए कहता है, बाहर प्रीत विजय को बताता है कि अजित को पूछताछ के लिए थाने लाया गया था, उसने माना की उस दिन वह और तीन लडको के साथ था, लेकिन उसने इस बात से इनकार कर दिया कि उसे आप की बेटी के बारे में कुछ भी पता है। उपर तक पहुँच होने के कारण उन तीन लडको का नाम कहीं दर्ज नहीं हुआ है, सिर्फ इंस्पेक्टर को उनका नाम पता है, हमने CCTV में भी देखा हमें कोई सबूत नहीं मिला।

दो सप्ताह बीत जाता है लेकिन विजय को अपनी बेटी उमा का कुछ पता नहीं चलता है, वो फिर एक बार पुलिस थाने जा कर पूछता है।

इंस्पेक्टर “तुमने पता किया कि तुम्हारी बेटी का किसी के साथ चक्कर तो नहीं था, उसी के साथ भाग गयी हो, तुम्हारी बेटी का मोबाइल ट्रेस करने पर लास्ट लोकेशन दूसरे प्रदेश का बताता है।” 

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विजय थाने के बाहर आ कर रोने लगता है, सब इंस्पेक्टर उसके पास आ कर उसकी पूरी मदद करने का आश्वासन देता है। प्रीत समय निकाल कर इस केस की खोजबीन में लग जाता है। इस कारण प्रीत का ट्रान्सफर दूसरे जिले में कर दिया जाता है। केस को पूरी तरह बंद कर दिया जाता है।

विजय को अंदेशा था की उमा के साथ कुछ गलत हुआ है, विजय धरने पर बैठ जाता है, मीडिया, प्रशासन सबकी नजर में ये केस आता है।

विजय के घर में एक आदमी आता है वो उसे ये सब बंद करने के लिए 30 लाख देने कि बात करता है। विजय मना कर देता है। वो आदमी विजय की मोबाइल पर उसकी छोटी बेटी रमा से बात करवाता है जो उसके कब्जे में थी। आदमी उसे ये सब बंद करने की धमकी देता है और पैसे से भरा बैग वहीँ छोड़ कर चला जाता है। विजय की छोटी बेटी रमा डरी सहमी घर वापस आ जाती है, विजय अपने बच्चो को खतरे में नहीं डाल सकता था इसलिए वह सब बंद कर देता है।

कई दिन बीत जाते हैं उसकी बड़ी बेटी उमा का कुछ पता नहीं चलता, विजय कि पत्नी को सदमे से लकवा मार देता है और कुछ दिनों में उसकी मौत हो जाती है। विजय पूरी तरह टूट जाता है। 

वक़्त बीतता गया विजय के अंदर दर्द से पनपी चिंगारी धीरे धीरे धधकता ज्वालामुखी बनता गया। लेकिन अपने बच्चो की सुरक्षा के लिए वह चुप रहा। विजय अपना वक़्त किताबे पढने और पैसा कमा कर बच्चो को अच्छी शिक्षा देने के लिए लगाने लगा। धीरे धीरे 5 साल बीत गए, वक़्त के साथ उसके बच्चे पढ़ कर विदेश में सैटल हो गए।

बीते 5 सालो में विजय ने अजित से उमा के बारे में कई बार पूछा, लेकिन अजित ने साफ़ मना कर दिया की उसे कुछ नहीं पता। अजित ..उमा का स्कूल टाइम में दोस्त था, जो उसी मोहल्ले में रहता था, विजय और उसके माँ पिता परिचित थे और उमा के गायब होने से पहले उनका एक दूसरे के घर आना-जाना भी था।

बीता वक़्त विजय के अंदर के दर्द को कम नहीं कर सका। विजय ने प्राइवेट डिटेक्टिव हायर किया और अजित से उमा के बारे में पता करने को कहा।

कुछ दिनों बाद डिटेक्टिव ने विजय को बताया की ‘अजित ने नशे की हालात में बताया की 31 दिसम्बर को उसने अपने दोस्तों के साथ उमा को कार में लिफ्ट दी, लेकिन अजित ने उन तीनो के नाम नही बताये, लेकिन उसकी बातो से ये कन्फ़र्म है की उमा के साथ कुछ गलत हुआ उस दिन।’ 

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विजय अजित पर नजर रखने लगा, उसकी एक-एक आदत, उसका पूरा रुटिन, उसके दोस्त, उसकी हर एक साँस पर उसकी नज़र थी। अजित पीने के लिए हर शनिवार बार जाता था। विजय एक मौके की तलाश में था, जो उसे एक दिन मिल गया, अजित बहुत ज्यादा नशे की हालत में एक बार से निकला, वो चलने की हालत में भी नही था। विजय ने उसे उठा कर अपनी कार में डाला और उसे एक सुनसान बंद पड़ी मिल में ले गया। उसने कई साल कई कंपनी और मिल में काम किया था, इसलिए उसे इन सब के बारे में काफी जानकारी थी।

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विजय ने अजित के दोनों हाथ बांध कर उसे एक खम्भे से बांध दिया, और उसे होश में लाने के लिए एक इंजेक्शन लगाया।

विजय “मेरी बेटी उमा कहाँ है, उसे क्या हुआ?”  अजित “मुझे नहीं पता, मेरे हाथ खोलो” 

विजय गुस्से से बोला “मुझे पता है, तुमने और तुम्हारे दोस्तों ने उमा को अपनी कार में लिफ्ट दी थी”    विजय ने वहाँ पड़ी एक नुकीली कील उठा कर उसके पैर में घुसा दिया, अजित दर्द से चिल्लाता है।

“तुम मुझे सब सच बता दो, मै तुमसे वादा करता हूँ, मै तुम्हे आजाद कर दूंगा, नहीं तो आज तुम्हारा आखरी दिन होगा” विजय की आंखे गुस्से से लाल थी।

अजित दर्द से कराहता हुआ डर से बोला “प्लीज मुझे मारना नही, मै.. मै मरना नही चाहता, मै आप को सब सच-सच बताता हूँ, उस.. उस दिन हम चार, कार से पार्टी में जा रहे थे, मैने उमा को देखा वो पैदल हाईवे पर जा रही थी, मैंने पुछा तो पता चला उसकी दोस्त कि स्कूटी ख़राब हो गए थी इसलिए वो किसी बस का इंतजार कर रही थी घर जाने के लिए ..मैने उसे कार में लिफ्ट देने के लिए कहा, उसने मना कर दिया, मेरे जोर देने पर वो कार में बैठ गयी, हमे भी काफी दूर तक उसी रास्ते पर जाना था ..मै उमा और शेखर पीछे की सीट पर बैठे थे, आगे ड्राइविंग पर माइकल और बाजू की सीट पर जाकिर था, हम चारो ने थोड़ा नशा कर रखा था। अचानक शेखर ने अपने हाथ में ड्रग्स निकल कर उमा का मुँह दबा दिया ..ड्रग्स उसकी नाक और मुँह में चला गया, वो छुटना चाह रही थी,

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लेकिन वो कुछ नहीं कर पाई ..ड्रग्स से वो नशे में जाने लगी, वो चलती कार से कूद कर भागी भी ..लेकिन उसे पकड़ लिया ..मैंने उन्हें ये करने से मना किया लेकिन वो नहीं माने। हम सब माइकल के फार्म हाउस में पहुचे, मैंने उन्हें ये सब नहीं करने को कहा तो माइकल ने मुझे 2 लाख रुपये दे कर मुँह बंद रखने को कहा तो मै लालच में आ गया। मै रुपये ले कर घर वापस आ गया।”

“सच सच बोल, नहीं तो मै अपना किया वादा भूल जाऊंगा” गुस्से से लाल विजय कील अजित के एक पैर से निकाल कर दुसरे पैर में घुसा देता है।

दर्द से बिलबिलाता हुआ अजित कहराते हुए बोला “कार के अंदर हम सब ने उसका रे* किया, नशे में गलती हो गयी, प्लीज माफ़ कर दो, बाकि मैंने जो बताया वो सब सच है। इसके आलावा मुझे कुछ नहीं पता”

“अपने तीनो दोस्तों की पूरी डिटेल मुझे दो, मैंने तुम्हे आजाद करने को कहा था, मैं अपना वादा पूरा करूँगा ..लेकिन अब तुम इस शहर में नहीं दिखोगे” विजय कि आंखे आंसुओ से भरी थी।

विजय तो अपने घर पहुँच गया लेकिन अजित नहीं पहुँचा।

विजय ने शेखर और जाकिर का पता किया, दोनों ही रसूक वाले परिवार से थे। लेकिन उसने भी अपनी लड़ाई लड़ने की संकल्प कर लिया था। जब एक आम आदमी कुछ ठान लेता है तो वो किसी खास को भी गुठली की तरह निचोड़ देने का दम रखता है।

विजय ने उन पर नजर रखनी शूरू कर दी, उनकी ताकत, कमजोरी, आदत, दोस्त, जो भी संभव था उन सब पर उसने नजर रखी। उसने सोशल मीडिया की सारी बारिकिया सीखी। विजय ने फेक-बुक पर एक लड़की शीला की फेक प्रोफाइल बना कर उन दोनों से दोस्ती कर ली और उनसे लगातार कांटेक्ट में रहने लगा।

शीला अपनी खूबसूरती और हॉट मैसेज उन्हें दीवाना बना देती है। दोनों ने शीला से मिलने के लिए फेक-बुक पर कई बार कहा, मगर शीला ने सही समय आने पर मिलने के लिए बात को टाल दिया। धीरे-धीरे 6 महीने बीत गए। विजय सही समय और सही जगह की तलाश में था। शीला को 31 दिसम्बर नये साल की पार्टी में आने का इनविटेशन मिला, शीला ने आने के लिए हाँ कर दी।

.... 31 दिसम्बर 1999 ..रात 9.00 बजे .... ठंड का मौसम....

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पार्टी वेन्यू एक होटल ....

ठंड से बचने के लिए सभी गर्म कपड़े पहने हुए, कोई रोड साइड आग सेक रहा था। विजय पार्टी की जगह पर आस-पास नजर रख रहा था। शेखर और जाकिर एक साथ कार में वहाँ पहुँचते हैं। वो दोनों पार्टी करने चले जाते हैं। 1 घंटे बाद बाद शेखर के मोबाइल पर शीला का वोईस मेसेज(वोईस चेन्जर एप से) आता है की उसकी कार हाईवे में 10 किलोमीटर पर बंद पड़ गयी है। शीला अपनी कार का नंबर भी बताती है। शेखर और जाकिर एक कार में हाईवे की तरफ चल देते हैं।

हाईवे पर 10 किलोमीटर से ज्यादा चलने के बाद उन दोनों को एक कार सुनसान रोड पर किनारे खड़ी हुई दिखी। दोनों अपनी कार रोड के किनारे पार्क कर देते हैं। दोनों उतर कर शीला की कार के पास जाते हैं।

शेखर “ओ ड्राईवर शीला मैडम कहाँ हैं”            ड्राईवर(विजय) “सर, वो मैडम को एक नंबर बहुत जोर से आई थी, झाड़ी में गयी हैं हल्का होने”      ....5 मिनट बीत गए......

जाकिर “बहुत टाइम लगा रहीं है मैडम, जरा देख कर आते हैं कहीं झाड़ी में कोई मिल तो नही गया, उसके साथ बिजी हो गयीं हो।”          .....दोनों हँसते हैं....   जाकिर झाड़ियो की तरफ चला जाता है....

शेखर अपनी कार के करीब खड़ा मोबाइल देख रहा था कि अचानक एक स्प्रे होता है और वो अपने होश खो देता है। ड्राईवर(विजय) शेखर की जेब से चाभी निकल कर, उसे कार में बैठा कर कार लॉक कर देता है।

जाकिर “ओ ड्राईवर, कहाँ हैं शीला मैडम, झाड़ियो में तो नहीं मिली, शेखर कहाँ गया”

ड्राईवर “मैडम और सर कार के अंदर हैं।”          ....जाकिर काली फिल्म लगे कार के शीशे में देखने की कोशिश करता हुआ कार की और बढता है....  ..कार के पास आ कर शीशे को ठोकता है, “अबे दरवाजा तो खोल, अकेले क्या कर रहा है” जाकिर ..

रात 12.00 बजे ....

जाकिर और शेखर कार में बेहोश पड़े हैं, ड्राईवर(विजय) अपनी कार छोड़ कर ..उनकी कार लेकर हाईवे से निकल कर एक सुनसान पड़े मिल में पहुँचता है। विजय दोनों को कार से निकाल कर मिल के अंदर ले जाकर उन्हें अलग-अलग प्लेटफार्म पर बैठा कर उनके हाथ पैर बांध दिये और उन्हें होश में लाने के लिए इंजेक्शन लगाया।

शेखर “हम लोग कहाँ है, तू कौन हो, हमे बांध क्यों रखा है। जाकिर उठ क्या हुआ तुझे”

“ऊ..ऊ..ऊह....पूरा सिर घूम रहा है” जाकिर थोड़ा होश में बोला।

“उमा कहाँ है, क्या किया तुमने उमा के साथ” विजय ने डबडबाती आँखों से पूछा।

“कौन उमा बे, पागल है क्या, हमे किसी उमा के बारे में नहीं पता..  ..तुझे नहीं पता हम दोनों कौन है, जिन्दा रहना है तो हमे छोड़ दो” जाकिर गुस्से से बोला।

“आज से 6 साल पहले 31 दिसम्बर 1994 को तुम चार दोस्तों ने एक लड़की को अपनी कार में लिफ्ट दी थी, उसका नाम उमा था, वो अपने घर वापस नहीं लौटी, कहाँ है वो”

विजय उनसे बार-बार पूछता है, उन्हें थोड़ा टार्चर भी करता है। लेकिन दोनों उसे कुछ भी नहीं बताते हैं। अचानक विजय को सीने में दर्द उठता है और वो सीने पर हाथ रख कर दर्द से तड़पता हुआ जमींन पर गिर जाता है।  

आ..आह..कहाँ है मेरी उमा.. बता दो .. कहाँ है वो.. विजय दर्द से तड़पता हुए बोला  .. ऐसा लगता है जैसे उसे दिल का दौरा पड़ा हो ....

“बुड्ढ़े तूने बहुत हिम्मत की, हमे यहाँ तक ले आया ...लगता है तू मरने वाला है, चल तेरी आखरी इच्छा पूरी कर देते हैं..” जाकिर अकड़ कर बोला

शेखर हँसते हुए बोला “सुन, मै बताता हूँ..तेरी बेटी को हमने लिफ्ट दी..ओ हो क्या गजब थी वो.. मूड बन गया हम सब का..मैंने उसे दबोच कर ड्रग्स दे दिया..नशे में और भी मस्त लग रही थी..कार में ही हम चारो ने तेरी बेटी का रे* किया .. उसके साथ खूब मजा किया.. वो धीरज गेस्ट हाउस पहुँचने तक बहुत नाटक किया याद है न जाकिर ..माइकल ने उसके मुँह पर पैसे मार कर भगा दिया.. गेस्ट हाउस में हमने मस्त पार्टी की ..तेरी बेटी को भी खूब पिलाया.. बिना कपड़ो के क्या लग रही थी, बेड पर, हाथ बंधे हुए ओ हो  .. उसके साथ बहोत मजा आया क्या चिल्लाती थी, जब चिल्लाती थी और भी जोश आता था.. मन तो किया रॉड ठोक दू.. पर था नहीं ..उसके चिल्लाने में अलग नशा था.. मर्द होने का अहसास होता.. सुबह हम दोनों तो निकल गए.. क्यों जाकिर .. माइकल ने उसका क्या किया ..अपने को आज तक नहीं बताया ..ऐसा तो नहीं आज तक उसका मजा ले रहा हो..”  ..दोनों वहशी पन से भरी हँसी हँसते हैं ..

“मुझे ये चिल्लाने का मजा नहीं आता ..मैंने तो उसके मुँह में कपड़ा ठूस के उसका मुँह बांध दिया ..अपने को मजा लेते वक़्त ज्यादा आवाज पसन्द नही है ..क्या तड़पती थी वो ..जब सिगार से जलाता था मै उसको ..मजा लेने का मजा बढ़ जाता था” जाकिर वहशी की तरह बोले जा रहा था।

विजय जमींन पर पड़ा था उसके शरीर में कोई हरकत नहीं थी, लेकिन उसकी आँखों से आंसू बहे जा रहे थे। सामने दोनों अपनी वहशी बातो को मजे ले कर बता रहे थे।

अचानक से विजय के शरीर में हरकत होती है.. वो उठ कर खड़ा हो जाता है .. उसकी खून से भरी लाल आँखों से आंसू बह रह थे जिसका रंग लाल था.... वो अपने शरीर के उबलते हुए खून के साथ शांत खड़ा था।

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“साल* नाटक कर रहा था.. अगर हमे कुछ हुआ तो तुम जिन्दा नहीं बचोगे..कोई है हेल्प ..बचाओ ..” जाकिर की आवाज में डर था।

“साँप का फन देखना हो तो बीन बजाना पड़ता है, और दांत तोड़ना हो तो गर्दन दबोचनी पड़ती है। तुम्हारा मै क्या क्या तोड़ूगाँ, ये मुझे भी नहीं पता...

..तुम्हे तो जानवर कहना भी जानवरों की बेज्जती होगी” विजय के आँखों से आंसू निकल रहे थे, शरीर की नशे धधक कर बाहर आ रही थीं, लेकिन उसकी आवाज में ठहराव था।

दोनों बचाने के लिए चिल्लाते रहते है.. लेस्किन 5 किलोमीटर तक सुनसान इलाके में उन्हें सुनने वाला कोई नहीं..   विजय.. शेखर के सारे कपड़े उतार कर उसके हाथ रस्सियों से बांध कर उसे जमींन से थोड़ा उपर लटका देता है..    प्लीज.. प्लीज मुझसे गलती हो गयी ...मुझे माफ़ कर दो ..मै.. मै पुलिस के सामने अपना जुर्म कबूल कर लूँगा.. शेखर गिड़गिड़ा रहा था।   ..जाकिर उसे छोड़ देने के लिए चिल्ला रहा था। विजय पत्थर की तरह बिना कुछ सुने, कुछ ढूंढ रहा था। उसे जो चाहिये वो मिल गया।

विजय हाथो में सरिया और हथौड़ा ले कर आता है.. “तुझे घरो की बहू-बेटियां.. वासना की वस्तु लगती हैं ..चीखें ..सरिया..”   ..विजय सरिया शेखर के एनस में घुसा देता है ..शेखर दर्द से बिलबिला कर चीखता है ..दर्द में गालियाँ देता है ..विजय हथौड़े से सरिये को जोरदार ठोकता है सरिया और अंदर घुस जाता है.. शेखर चीखना चाहता है लेकिन उसके हलक से आवाज नहीं निकल पाती.. हथौड़े के हर वार पर शेखर को अपने वहशी मर्द होने का गुमान चींखो के साथ हवा हो रहा था। विजय शेखर के एक हाथ की रस्सी खोल देता है और उसे एक इंजेक्शन देता है। एक हाथ पर लटका हुआ शेखर अपने दूसरे हाथ की रस्सी खोलने की कोशिश करता है..

शेखर कराहता चीखता हुआ, रहम की भीख मांगता है..  “मजा लो इस 31 दिसम्बर की रात का..”  विजय जाकिर का हाथ पैर मुँह बांध कर उसे कार की डिग्गी में डाल देता है।

रात 3.00 बजे ....   

कार वहाँ से निकल कर कई किलोमीटर दूर एक वीरान बंद पड़ी मिल के पास पहुँचती है.. विजय.. जाकिर को मिल में ले जाता है।

 “प्लीज माफ़ कर दो ..तुम जो कहोगे मै वो करूँगा ..जो हमने किया ..पुलिस के सामने सब सच सच बता दूंगा ..तुम्हे जितने पैसे चाहिये मिलेंगे..” जाकिर गिड़गिड़ा कर रोने लगता है।

“इसे कहते हैं .. गुर्दा लगा फटने तो प्रसाद लगा बटने ..तुम अब तक के अपने और अपने दोस्तों के सारे जुर्म कबूल करोगे ..तो मै तुम्हे आजाद कर दूंगा..”

विजय मोबाइल पर विडियो बनता है ..जाकिर अपने और दोस्तों के द्वारा किये गए सभी जुर्म को डिटेल में बताता है..   

विजय जाकिर के दोनों हाथ रस्सियों से बांध कर उसके सारे कपड़े उतार देता है..

“प्लीज ..प्लीजज ..ऐसा मत करो ..त..त..तुमने कहा था कि मुझे आजाद कर दोगे..” जाकिर गिड़गिड़ाता है।    “आजाद करने की ही तैयारी कर रहा हूँ.. इस आजादी के बाद तुम्हे किसी भी आजादी की जरुरत नहीं पड़ेगी” विजय जवाब देता है।

विजय जाकिर का मुँह बांध कर उसे रस्सियों से जमींन के उपर लटका देता है.. और अपनी जेब से एक छोटा सा धारदार चाकू निकल कर जाकिर के दोनों पैरो में कई वार करता है ..जाकिर दर्द से बिलबिलाने लगता है ..विजय आस-पास से बहुत सी लकड़ियाँ लाता है ..और कुछ लकड़ियों तो ठीक जाकिर के नीचे रख कर उन्हें जला देता है ..फिर उसमे एक एक कर थोड़ी लकड़ियाँ डालता है ..उसकी गर्मी से जाकिर तड़प उठता है ..बंधे मुँह से उसे माफ़ करने को, कहने की कोशिश करता है।

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“जलाने वाले को पता होना चाहिये कि जलने में कितना दर्द होता है.. ..बहुत शौख है तुम्हे जलाने का.. मै भी तुम्हारी चींख नहीं सुन पाता.. ..कितनी शांति है यहाँ..”  विजय घायल शिकारी की तरह आँखों में खून लिए बोला जा रहा था।

विजय हर एक लकड़ी को आग में डालने के साथ ..जाकिर के शारीर पर एक एक वार करता है.. ..तक़रीबन 2 घंटे बाद विजय ने अपने मोबाइल से शीला का प्रोफाइल डिलीट कर देता है ..मोबाइल का विडियो अपने दूसरे मोबाइल में ट्रान्सफर कर ..मोबाइल को फोर्मेट कर देता है ..मोबाइल, शेखर और विजय के कपड़े के साथ कार में आग लगा कर वहाँ से निकल जाता है..

.... 4 जनवरी 2020 .... साम 5.00 बजे .....

डिंग-डौंग.. ..विजय के घर की डोर बेल बजती है..  ..विजय दरवाजा खोलता है.. ..सामने इंस्पेक्टर विजय को खड़ा पाता है..

“इंस्पेक्टर साहब लगता है.. ..आज कल आपको मेरी कुछ ज्यादा याद आ रही है.. ..अभी परसों ही तो मिले थे.. ..आप ने पूछताछ भी की थी.. ..आज फिर से..” विजय मुस्कराते हुए बोला।

“अंदर चल कर बात करते हैं” इंस्पेक्टर प्रीत बोला।    ..दोनों घर के अंदर चले जाते हैं..

“8 महीने से अजित गायब है.. ..1 जनवरी को शेखर और जाकिर की डेड बॉडी मिली.. ..2 जनवरी को मैंने आप से पूछताछ की.. ..आप को कुछ भी जानकारी नहीं है ये कह कर आप ने इंकार कर दिया.. ..हमे आप की कार हाईवे पर मिली ..सी सी टी वी(CCTV) में कई जगह आप की कार में एक आप दिखे.. ..क्या कहना है आप का इस बारे में..” इंस्पेक्टर प्रीत ने विजय से पूछा।

“30 दिसम्बर को अपने काम से मै यहाँ से 5 घंटे दूर राजस्थान गया था.. ..31 दिसम्बर को मेरी कार और उसमे रखा मोबाइल चोरी हो गया.. मैंने वहाँ चोरी की रिपोर्ट भी लिखाई.. मेरे पास एफ.आई.आर(FIR) की कॉपी और टोल प्लाजा की रसीद (रीसिप्ट) है.. आप पूछेगें, मै वापस कैसे आया.. ..स्टेट ट्रांसपोर्ट की बस से ..उसका टिकट भी मिल जायेगा ..जब कार ही मेरे पास नहीं थी तो मै कार में कैसे हो सकता हूँ ..क्या मेरी शक्ल उसमे दिखी आप को..” विजय ने शांति से जवाब दिया।

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“नहीं उसका चेहरा मफलर से ढका था ..मुझे नहीं पता कैसे लेकिन ये सभी विक्टिम आप की बेटी उमा के गायब होने के मामले से जुड़े हुए थे” इंस्पेक्टर प्रीत झुझलाहट में बोला।

“आप कहना क्या चाहते है ..मै टोल प्लाजा से रसीद लेकर राजस्थान गया ..वहाँ कार चोरी की रिपोर्ट की .. स्टेट ट्रांसपोर्ट की बस का टिकट लिया ..अपनी कार ले कर हाईवे छोड़ कर अंदर अंदर के रास्ते पूरा रास्ता तय किया ..जिससे टोल ना देना पड़े ..यहाँ आ कर अपना मुँह ढक कर ..अपनी कार हाईवे पर छोड़ी ..आप जो कह रहें है वो सब किया ..और हाईवे छोड़ कर अंदर अंदर के रास्ते अपने घर आ गया ..ऐसा करने के लिए तो कई महीनो की रिसर्च की गयी होगी ..काश मैं कर पाता..  ..अभी तो नया सिम भी लेना है ..और इस ठंड के मौसम में तो सभी अपना मुँह ढक कर रखते है” विजय आत्मविश्वास से बोलता गया।

“मै ऐसा कुछ नहीं बोलना चाहता ..मुझे आप की चिंता है ..इन तीनो दोस्तों का नाम तो कई केस में आया है ..लेकिन इन तीनो के साथ अजित का नाम सिर्फ आप की बेटी के केस में आया था ..अजित गायब है ..आधिकारिक(official) तौर पर उन सब का नाम कहीं दर्ज नहीं है ..लेकिन उनके परिवार और मेरे डिपार्टमेंट को तो पता है ..शक आप पर है ..अब सिर्फ माइकल बचा है ..उसके पिता अमीर बिज़नेस मैंन और राजनीती में पहुँच वाले पावरफुल इन्सान है ..ये सब.. जो भी कर रहा है उसे माइकल हो हाथ लगाना नामुमकिन होगा.. ये किसी सीधे-साधे आम इन्सान के बस की बात नहीं है” इंस्पेक्टर प्रीत बोला।

“दुनिया में कुछ भी नामुमकिन नहीं .. साँप को मारने के लिए मासूम खरगोश नहीं शिकारी बांज बनना पड़ता है ..लगता है बेरहम वक़्त ने किसी को मासूम खरगोश से शिकारी बांज बना दिया है ..जब जहाँ जो होना है वो हो कर रहता है” विजय गंभीरता से बोला।

इंस्पेक्टर प्रीत विजय के घर से बाहर आ कर ..दूसरे पुलिस वालो को विजय पर नज़र रखने के लिए कहता है।

सब इंस्पेक्टर “सर ऊपर से बहोत प्रेशर है, बोलिए तो इसे उठा ले।”    “कल सुबह उठा लो, लेकिन कोई गलती नहीं, हमारे पास कोई ठोस सबूत नहीं है।” इंस्पेक्टर प्रीत

दूसरे दिन सुबह, पुलिस स्टेशन में विजय, इंस्पेक्टर प्रीत और सब इंस्पेक्टर इंट्रोगेसन रूम में बैठे हुए....

खून वाली रात तुम कहा थे सब इंस्पेक्टर ने पूछा        “अपने घर पर सो रहा था” विजय

“ये तीनो खून तुमने किये, हमारे पास सबूत है” सब इंस्पेक्टर बोला।   

“नहीं, इन खून से मेरा कोई लेना देना नहीं है” विजय ने इनकार कर दिया।

“कार का मिलना, खून की जगह जूतों पर लगी मिट्टी मिली ..जो तुम्हारे घर के इलाके में ही मिलती है ..इन तीनो का तुम्हारी बेटी के गायब होने के केस में नाम आया था  ..मर्डर प्लेस पर जूतों के 9 नंबर साइज़ का मिलना.. ..तुम्हारे 8 नंबर के पैर भी 9 नंबर के जूतों में एडजस्ट हो कर आ सकते हैं.... पिछले कुछ दिनों में तुम उन जगहों पर भी दिखे जहाँ उन सब का आना जाना था” इंस्पेक्टर प्रीत बोला

“ये संयोग की बात है ..लेकिन इन खून में मेरा कोई हाथ नहीं है” विजय ने जवाब दिया  

सिपाही अंदर आ कर बताता है.. कि विजय के लिए उसका वकील आया है। इंस्पेक्टर प्रीत ..सब इंस्पेक्टर से विजय को छोड़ देने के लिए इशारा करता है।

दो महीने से ज्यादा वक्त बीत जाता है.. ..लगता है जैसे सब कुछ सामान्य चल रहा है।

.... 10 मार्च 2020 ..... रात 1.00 बजे ....

इंस्पेक्टर प्रीत को पता चलता है कि विजय की कार ब्रिज पर से नदी में गिर गयी है और विजय उसी कार में था। नदी की धार तेज होने के कारण कार आगे बह गयी है। प्रीत ..विजय को खोजने और कार निकालने के लिए दूसरे डिपार्टमेंट से कांटेक्ट करता है ..कार और विजय को खोजने का काम चालू ही होता है कि प्रीत को खबर मिलती है कि..

..माइकल के पिता जोजफ का अपहरण हो गया है ..जोजफ जैसे नामी बिज़नेस मैन और पावरफुल व्यक्ति के अपहरण की खबर से महकमा हिल जाता है.. ..दूसरी तरफ विजय का कुछ पता नहीं चल रहा होता है।

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इंस्पेक्टर प्रीत को छानबीन करने पर पता चलता है कि विजय ने अपना घर कुछ महीने पहले ही बेच दिया था ..विजय ने जिसे घर बेचा था उसे एक अच्छी रकम दे कर उसी घर में किराये पर रह रहा था ..और अब विजय लापता था।

अपने पिता के अरहरण की खबर सुन कर माइकल विदेश से वापस आता है। उसकी सुरक्षा में उसके पर्सनल सिक्योरिटी के साथ पुलिस का कड़ा पहरा भी लगा दिया जाता है। उसकी सुरक्षा को देख कर लगता है की परिंदा भी पर नहीं मार सकता।

लेकिन कहते है कि ..मंजिल पाने के लिए रास्ता बनाने वाले का रास्ता किस्मत भी नहीं रोक सकती।

7 दिन बीत चुके थे ..‘17 मार्च 2020’..ना ही विजय ना ही जोजफ का कोई पता चला था। माइकल की प्रेमिका ईवा जो कि हॉस्टल में रह कर पढाई कर रही थी.. ..उसका फ़ोन माइकल को आता है..

“हैलो, माइकल पिचले 8 महीनो से तुम विदेश में थे, इतने महीनो बाद आये हो और मिलना तो दूर एक फ़ोन तक नहीं किया।” ईवा नाराज होते हुए बोली

“माइ लव ..तुम्हे तो पता है पापा गायब है ..पुलिस का कहना है कि मेरी जान को भी खतरा है ..इसलिए मुझ पर नजर रखते हैं ..मेरी पर्सनल सिक्योरिटी तो साँस भी नहीं लेने देती” माइकल हलके से बोला

“तुम मेरी जान हो..  इस जान के होते हुए तुम्हारी जान को क्या खतरा हो सकता है ..मै कुछ नहीं सुनना चाहती ..प्लीज आ जाओ ..आज फार्म हाउस में मिलते हैं अपनी पर्सनल सिक्योरिटी भी ले आना ..वो बाहर ..हम अंदर..” ईवा कामुकता भरे शब्दों में बोली।     ....माइकल आने के लिए मान जाता है।  

माइकल अपनी प्राइवेट सिक्योरिटी के साथ फार्म हाउस पहुँचता है.. सिक्योरिटी बाहर अपनी ड्यूटी पर लग जाती है माइकल अंदर जाता है ..माइकल अपने बड़े से फार्म हाउस के लक्जरी रूम में पहुँचता है। माइकल ईवा को फ़ोन लगता है ..मोबाइल की रिंग रूम के बाहर बजती है जिसे ले कर विजय रूम के अंदर आता है..

“कौन हो तुम ..तुम तुम अंदर कैसे आये.. ..ईवा कहाँ है  ..सिक्योरिटी कहाँ है ..सिक्योरिटी ..सिक्योरिटी” माइकल घबराहट में चिल्लाया  

“चिल्लाओ नहीं ..बाहर कोई सिक्योरिटी नहीं है ..सब बेहोश हैं ..मुझसे बेहतर तो तुम्हे पता होगा     ..सन्नाटे में गले की आवाज क्या मौत की आवाज भी दम तोड़ देती है” विजय शांत अंदाज से गुस्से में बोला

माइकल दुबारा कुछ बोलता उससे पहले विजय बन्दूक ताने उसके सामने खड़ा था ..विजय ने माइकल के हाथ पैर बांध दिये।

“तुम हो कौन ..चाहते क्या हो” माइकल डरता हुआ बोला

“तुम एक एक कर सवाल पूछो ..उससे पहले मै तुम्हे तुम्हारे सारे सवालो का जवाब दे देता हूँ         ..मै वो हूँ जिसे तुम्हारे दोस्तों ने अपने क़त्ल में कातिल बना दिया ..पहले बेटा बना ..फिर पति ..पिता ..अब इन्सान के रूप में यमराज..

..तुम्हारी सिक्योरिटी को मेरे लोगो ने बेहोश किया ..तुम्हारी गर्लफ्रेंड से मैंने ही फ़ोन करवाया ..तुम्हारी सिक्योरिटी को साइड करने ..तुम्हारे बाप और गर्लफ्रेंड का अपरहण करने के लिए 80 लाख की डील की ..तुम्हारे दोस्त अजित, शेखर, जाकिर को उपर पंहुचा कर धरती का बोझ कम किया ..5 साल तक घुट घुट कर जिया ..हर सिचुएशन के लिए प्लानिंग की ..अपनी बेटी उमा के लिए पुलिस से ले कर प्रशासन तक दर-दर भटका ..ये सब बंद करने के लिए तेरे बाप ने मेरी छोटी बेटी को अगवा करवाया ..मुझे 30 लाख दिए सब बंद करने के लिये ..लेकिन ..तेरे बाप को ये समझ नहीं आया कि उसने..

..तुम सबकी अर्थी की लकड़ियाँ भेज दी हैं मुझे तो सिर्फ आग लगाना था  ..इन्ही 30 लाख को मैंने लाखो में बढाया..

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मेरी बेटी को उठा कर ..तुम सब ने मेरी जिंदगी में आग लगायी ..वो आग तुम्हे भस्म करने निकल पड़ी” विजय आँखों में खून लिए एक साँस में बोलता गया

“द..देखो मुझसे गलती हो गयी ..प्लीज मुझे माफ़ कर दो ..मै बदल गया हूँ ..मै पहले जैसा नहीं रहा ..प्लीज मुझे छोड़ दो” माइकल गिड़गिड़ाता हुआ बोला

“मै तुम्हे आजाद कर दूंगा ..अगर तुम सच सच बता दो कि मेरी बेटी कहाँ है ..तुम ही हो जिसे ये पता है ..झूठ बोला तो जिन्दा गाड़ दूंगा” विजय ने गुस्से से पूछा

“मुझे नहीं पता” जैसे ही माइकल ने बोला ..विजय ने वहाँ पड़ी एक बोतल तोड़ कर ..उसके पैर में घुसा दी ..माइकल दर्द से बिलबिला कर चिल्ला उठा ..विजय ने वही टूटी बोतल उसके एक पैर से निकाल कर उसके दूसरे पैर में घुसा दी ..माइकल तड़पता चिल्लाता रहा।

“अब तुम्हारी जुबान से या तो सच ..या तुम्हारी जुबान जिस हलक से जुड़ी है वो धड़ से अलग” विजय की ..बन्दूक का निशाना माइकल की गर्दन के बीच में था।

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माइकल की हालत मरते हुए चूहे की तरह थी..

“प्लीज मुझे माफ़ कर दो ..तुम्हारी बेटी अब इस दुनिया में नहीं है” माइकल दर्द और डर से बोला

“क्या ..किया उसकी बॉडी का ..कहाँ है..” विजय को जो थोड़ी आस थी अपनी बेटी के जिन्दा होने की ..वो ख़त्म हो चुकी थी।

“उसकी बॉडी को यहीं फार्म हाउस में गाड़ दिया था ..वो यहीं है ..मैंने सब सच सच बता दिया ..प्लीज मुझे आजाद कर दो” माइकल एक साँस में ..आजाद होने की आस में बोल गया।

“तुम अपने अब तक के सारे जुर्म कबूल करो ..मै तुम्हे आजाद कर दूंगा” विजय आँखों में आंसू लिए बोला

माइकल ने अपने सभी जुर्म कबूल किये ..जिसे विजय ने अपने मोबाइल में रिकॉर्ड कर लिया।

अगले दिन सुबह जू-ट्यूब पर उन सब की ..अपने जुर्म को कबूलने वाली विडियो अपलोड हो गयी थी ..जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गयी।

माइकल के विडियो स्टेटमेंट से पुलिस को पता चला कि ..उमा की बॉडी फॉर्म हाउस में दफन है ..पुलिस ने फॉर्म हाउस उस जगह की खुदाई की जहाँ माइकल ने विडियो में बताया था ..वहाँ उमा की बॉडी के कोई अंश नहीं मिले ..लेकिन माइकल मिला जो अब सिर्फ एक बॉडी था।

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जिस पर लिखा था ..’वक़्त की नियति भी अजीब है ..कभी सांसे रुकने पर दफन करते हैं ..कभी दफन करने पर सांसे रूकती हैं’     ......‘जहाँ से आया वहीँ है जाना फिर क्यों गुनाह का जीवन बिताना’ ..पुलिस ने विडियो के आधार पर पूरे फॉर्म हाउस की गहन खुदाई की जहाँ उन्हें और भी लड़कियों के कंकाल मिले।

पुलिस ने कॉल रिकॉर्ड के आधार पर ईवा से पूछताछ की लेकिन उसे भी नहीं पता था कि ..उसे किसने अगवा किया था ..और माइकल को किसने मारा।

27 मार्च 2020 ..माइकल का पिता जोजफ सुबह 5 बजे पुलिस को सड़क के किनारे बेहोश पड़ा मिला ..होश आने पर अपने बेटे की मौत की खबर सुन कर ..उसको लकवा मार गया ..अब ना ही वो बोल सकता था ..न लिख सकता था।

10 अप्रैल 2020 ..जोजफ की हालत और ख़राब होने पर.. जाँच से पता चला की उसे ..कोरोना हो गया ..उसे ICU में भर्ती करना पड़ा।

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पुलिस कोरोना में ड्यूटी के साथ ..विजय का पता लगा रही थी ..पुलिस इन्वेस्टीगेशन में पता चला की विजय की ‘20 अप्रैल 2020’ में इंटरनेशनल फ्लाइट की बुकिंग थी ..फ्लाइट्स भी बंद थी लॉकडाउन में..

..ये सब मर्डर किसने किये ..ये इन्वेस्टीगेशन चल रही है।

आप को लग रहा है ..कहानी ख़त्म ..ये जिन्दगी एक कहानी है ..और ..कहानी कभी ख़त्म नहीं होती ..वो किसी न किसी रूप में चलती रहती है....

....प्रारम्भ.... 

 P.K.

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